मेरा माज़ी, मेरा माज़ी, मेरी तन्हाई का यह अँधा शिगाफ़, ले के सांसो की तरह मेरे साथ चलता रहा. जो मेरी नब्ज़ की मानिंद मेरे साथ जिया, जिसको आते हुए, जाते हुए बेशुमार लम्हें अपनी सुनलाह अंगुलियों से गहरा करते रहे, करते गए. किसी की ओट पा लेने को लहू बहता रहा. किसी को हमनफस कहने की जुस्तजू में रहा. कोई तो हो जो बेशाख्ता इसको पहचाने, तड़प कर पलटे अचानक इसे पुकार उठे. मेरे हमशाख, मेरे हमशाख, मेरी उदासियों के हिस्सेदार, मेरे उधुरेपन के दोस्त, मेरे अकेलेपन. तमाम जख्म जो तेरे है, मेरे दर्द तमाम. तेरी कराह का रिश्ता है मेरी आहों से. तू एक मसज़िदे वीरां है, मै तेरी अजां, अजां जो अपनी ही विरानागियो से टकराकर ढकी छुपी बेवा ज़मी पर पढ़े नमाज़ खुदा जाने किसको सज़दा करे.
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